৫৪০

পরিচ্ছেদঃ

৫৪০। আমাদেরকে অগ্নিপূজকের কুকুর ও তার পাখী দ্বারা শিকারকৃত পশু (ভক্ষণ করা) হতে নিষেধ করা হয়েছে।

হাদীছটি য’ঈফ।

এটি ইমাম তিরমিয়ী (২/৩৪১), বাইহাকী (৯/২৪৫) শুরায়েক সূত্রে হাজ্জাজ হতে তিনি কাসিম ইবনু আবী বাযযাহ হতে তিনি সুলায়মান আল-ইয়াশকুরী হতে ... বর্ণনা করেছেন। তিরমিয়ী হাদীছটিকে দুর্বল বলেছেন তার এ ভাষায়ঃ এটি গারীব, এ মাধ্যম ছাড়া এটিকে আমি চিনি না।

বাইহাকীও দুর্বল বলেছেন তার এ ভাষায়ঃ এটির সনদে এমন ব্যক্তি রয়েছেন যাকে দলীল হিসাবে গ্রহণ করা যায় না।

আমি (আলবানী) বলছিঃ তারা দু’জন হচ্ছেন শুরায়েক ইবনু আবদিল্লাহ আল কাযী, তিনি তার মুখস্থ বিদ্যার দিক থেকে দুর্বল। আর হাজ্জাজ ইবনু আরতাত, তিনি মুদাল্লিস বর্ণনাকারী। আর এ অধ্যায়ে এমন কোন হাদীছ নেই যা আলোচ্য হাদীছটির জন্য সাক্ষী হতে পারে। আলোচ্য হাদীছটিকে আমরা দু’ভাবে বুঝতে পারিঃ

১। যদি অগ্নিপূজক তার কুকুরকে নিজেই প্রেরণের মাধ্যমে শিকার করে, তাহলে তার শিকারকৃত পশু খাওয়া যাবে না। তখন হাদীছটির অর্থ সহীহ হবে।

২। আর যদি কোন মুসলিম অগ্নিপূজকের কুকুরকে প্রেরণের মাধ্যমে শিকার করে তাহলে তার শিকারকৃত পশু খাওয়া যাবে, এ সময় হাদীছটির অর্থ সহীহ হবে না। ইমাম মালেক (রহঃ) "আল-মুওয়াত্তা" (২/৪১) গ্রন্থে এ বিষয়ে বিস্তারিত আলোচনা করেছেন।

نهينا عن صيد كلب المجوسي وطائره
ضعيف

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أخرجه الترمذي (2 / 341) والبيهقي (9 / 245) من طريق شريك عن الحجاج عن القاسم بن أبي بزة عن سليمان اليشكري عن جابر. وضعفه الترمذي بقوله: " غريب لا نعرفه إلا من هذا الوجه "، والبيهقي بقوله: في هذا الإسناد من لا يحتج به
قلت: وهما شريك وهو ابن عبد الله القاضي، وهو ضعيف من قبل حفظه. والحجاج وهو بن أرطاة، وهو مدلس وقد عنعنه. وليس في الباب ما يشهد للحديث، ويمكن فهمه على وجهين: الأول: أن يكون كلب المجوسي صاد بإرسال صاحبه فعلى هذا لا يجوز أكل صيده فيكون معنى الحديث صحيحا
الثاني: أن يكون الذي أرسله مسلما، وعلى هذا يحل صيده ولا يصح معنى الحديث وقد أوضح المسألة الإمام مالك أحسن التوضيح فقال في " الموطأ " (2 / 41)
الأمر المجتمع عليه عندنا أن المسلم إذا أرسل كلب المجوسي الضاري فصاد أو قتل أنه إذا كان متعلما فأكل ذلك الصيد حلال لا بأس به، وإن لم يذكه المسلم، وإنما مثل ذلك مثل المسلم يذبح بشفرة المجوسي، أو يرمي بقوسه، أو بنبله، فيقتل بها، فصيده ذلك وذبيحته حلال لا بأس بأكله، وإذا أرسل المجوسي كلب المسلم الضاري على صيد فأخذه فإنه لا يؤكل ذلك الصيد إلا أن يذكى، وإنما مثل ذلك مثل قوس المسلم ونبله، يأخذها المجوسي، فيرمي بها الصيد فيقتله، وبمنزلة شفرة المسلم يذبح بها المجوسي، فلا يحل أكل شيء من ذلك

نهينا عن صيد كلب المجوسي وطاىره ضعيف - اخرجه الترمذي (2 / 341) والبيهقي (9 / 245) من طريق شريك عن الحجاج عن القاسم بن ابي بزة عن سليمان اليشكري عن جابر. وضعفه الترمذي بقوله: " غريب لا نعرفه الا من هذا الوجه "، والبيهقي بقوله: في هذا الاسناد من لا يحتج به قلت: وهما شريك وهو ابن عبد الله القاضي، وهو ضعيف من قبل حفظه. والحجاج وهو بن ارطاة، وهو مدلس وقد عنعنه. وليس في الباب ما يشهد للحديث، ويمكن فهمه على وجهين: الاول: ان يكون كلب المجوسي صاد بارسال صاحبه فعلى هذا لا يجوز اكل صيده فيكون معنى الحديث صحيحا الثاني: ان يكون الذي ارسله مسلما، وعلى هذا يحل صيده ولا يصح معنى الحديث وقد اوضح المسالة الامام مالك احسن التوضيح فقال في " الموطا " (2 / 41) الامر المجتمع عليه عندنا ان المسلم اذا ارسل كلب المجوسي الضاري فصاد او قتل انه اذا كان متعلما فاكل ذلك الصيد حلال لا باس به، وان لم يذكه المسلم، وانما مثل ذلك مثل المسلم يذبح بشفرة المجوسي، او يرمي بقوسه، او بنبله، فيقتل بها، فصيده ذلك وذبيحته حلال لا باس باكله، واذا ارسل المجوسي كلب المسلم الضاري على صيد فاخذه فانه لا يوكل ذلك الصيد الا ان يذكى، وانما مثل ذلك مثل قوس المسلم ونبله، ياخذها المجوسي، فيرمي بها الصيد فيقتله، وبمنزلة شفرة المسلم يذبح بها المجوسي، فلا يحل اكل شيء من ذلك
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai'f)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
যঈফ ও জাল হাদিস
১/ বিবিধ