২৭৩

পরিচ্ছেদঃ

২৭৩। সূরা নেসার পরে ওয়াকফ নেই।

হাদীসটি দুর্বল।

এটি তাহাবী “শারহু মা’য়ানীল আসার” গ্রন্থে (২/২৫০), তাবারানী (৩/১১৪/১), দারাকুতনী (৪/৬৮/৩,৪) এবং বাইহাকী তার “সুনান” গ্রন্থে (৬/১৬২) আব্দুল্লাহ ইবনু লাহীয়াহ সূত্রে ঈসা ইবনু লাহীয়াহ হতে ... বর্ণনা করেছেন।

দারাকুতনী বলেন (বাইহাকীও তাকে সমর্থন করেছেন) ইবনু লাহীয়াহ ছাড়া অন্য কেউ তার ভাই থেকে মুসনাদ হিসাবে বর্ণনা করেননি। তারা দু’জনই দুর্বল।
এটিকে সুয়ূতী “জামেউস সাগীর” গ্রন্থে উল্লেখ করেছেন এবং হাসান হিসাবে চিহ্নিত করেছেন। মানবী দারাকুতনী ও “আল-মাজমা” গ্রন্থে (২/৭) হায়সামীর কথা দ্বারা তার প্রতিবাদ করেছেন। তিনি বলেনঃ হাদীসটি তাবারানী বর্ণনা করেছেন, যার সনদে ঈসা ইবনু লাহীয়াহ রয়েছেন; তিনি দুর্বল।

তাহাবী ইমাম আবু হানীফা (রহঃ)-এর নিকট ওয়াকফ বাতিল এ মতামতের সমর্থনে এ হাদীস দ্বারা দলীল গ্রহণ করেছেন। এরূপ দলীল গ্রহণ করা নিতান্তই দুর্বল নিম্নে বর্ণিত কারণেঃ

১। হাদীসটি দুর্বল; যেমনটি অবহিত হয়েছেন। এর দ্বারা দলীল গ্রহণ করা অবৈধ ।

২। এটি (ওয়াকফ) শরীয়ত সম্মত এ মর্মে বর্ণিত সহীহ হাদীসের সাথে সাংঘর্ষিক, যা বুখারী ও মুসলিমের মধ্যে বর্ণিত হয়েছে। দেখুন "ইরওয়াউল গালীল” (৬/৩০/১৫৮২)।

لا حبس (أي وقف) بعد سورة النساء
ضعيف

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أخرجه الطحاوي في " شرح معاني الآثار " (2 / 250) والطبراني (3 / 114 / 1) والدارقطني (4 / 68 / 3 و4) والبيهقي في " سننه " (6 / 162) من طريق عبد الله بن لهيعة حدثنا عيسى بن لهيعة عن عكرمة قال: سمعت ابن عباس يقول: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول بعد ما نزلت سورة النساء وفرضت فيها الفرائض: فذكره، وقال الدارقطني: وأقره البيهقي: لم يسنده غير ابن لهيعة عن أخيه وهما ضعيفان
قلت: وبه يعرف ما في رمز السيوطي في " الجامع الصغير " لحسنه، وقد رده عليه المناوي في شرحه بقول الدارقطني هذا، وبقول الهيثمي في " المجمع " (7 / 2) : رواه الطبراني وفيه عيسى بن لهيعة وهو ضعيف، والحديث استدل به
الطحاوي لأبي حنيفة في قوله: إن الوقف باطل، وهو استدلال واه لأمور
الأول: أن الحديث ضعيف كما علمت فلا يجوز الاحتجاج به
الثاني: أنه معارض بأحاديث صحيحة في مشروعية الوقف، منها قوله صلى الله عليه وسلم لعمر بن الخطاب: " حبس الأصل، وسبل الثمرة " أي اجعله وقفا حبيسا، رواه الشيخان في " صحيحيهما "، وهو مخرج في " الإرواء " (6 / 30 / 1582)
الثالث: أنه يمكن تفسيره بمعنى لا يتعارض مع الأحاديث الصحيحة وبه فسره ابن الأثير في " النهاية " فقال: أراد أنه لا يوقف مال ولا يزوى عن وارثه، وكأنه إشارة إلى ما كانوا يفعلونه في الجاهلية من حبس مال الميت ونسائه، كانوا إذا كرهو االنساء لقبح أو قلة مال حبسوهن عن الأزواج لأن أولياء الميت كانوا أولى بهن عندهم

لا حبس (اي وقف) بعد سورة النساء ضعيف - اخرجه الطحاوي في " شرح معاني الاثار " (2 / 250) والطبراني (3 / 114 / 1) والدارقطني (4 / 68 / 3 و4) والبيهقي في " سننه " (6 / 162) من طريق عبد الله بن لهيعة حدثنا عيسى بن لهيعة عن عكرمة قال: سمعت ابن عباس يقول: سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول بعد ما نزلت سورة النساء وفرضت فيها الفراىض: فذكره، وقال الدارقطني: واقره البيهقي: لم يسنده غير ابن لهيعة عن اخيه وهما ضعيفان قلت: وبه يعرف ما في رمز السيوطي في " الجامع الصغير " لحسنه، وقد رده عليه المناوي في شرحه بقول الدارقطني هذا، وبقول الهيثمي في " المجمع " (7 / 2) : رواه الطبراني وفيه عيسى بن لهيعة وهو ضعيف، والحديث استدل به الطحاوي لابي حنيفة في قوله: ان الوقف باطل، وهو استدلال واه لامور الاول: ان الحديث ضعيف كما علمت فلا يجوز الاحتجاج به الثاني: انه معارض باحاديث صحيحة في مشروعية الوقف، منها قوله صلى الله عليه وسلم لعمر بن الخطاب: " حبس الاصل، وسبل الثمرة " اي اجعله وقفا حبيسا، رواه الشيخان في " صحيحيهما "، وهو مخرج في " الارواء " (6 / 30 / 1582) الثالث: انه يمكن تفسيره بمعنى لا يتعارض مع الاحاديث الصحيحة وبه فسره ابن الاثير في " النهاية " فقال: اراد انه لا يوقف مال ولا يزوى عن وارثه، وكانه اشارة الى ما كانوا يفعلونه في الجاهلية من حبس مال الميت ونساىه، كانوا اذا كرهو االنساء لقبح او قلة مال حبسوهن عن الازواج لان اولياء الميت كانوا اولى بهن عندهم
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai'f)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
যঈফ ও জাল হাদিস
১/ বিবিধ