১৮৪৯

পরিচ্ছেদঃ

১৮৪৯। সালমানকে জ্ঞান দান করে পরিতৃপ্ত করা হয়েছে।

হাদীসটি দুর্বল।

এটিকে ইবনু সা’দ (৪/৮৪-৮৫) সহীহ সনদে আবু সালেহ হতে বর্ণনা করেছেন। তিনি বলেনঃ সালমান (রাঃ) আবুদ দারদা (রাঃ)-এর নিকট আসলেন। আবুদ দারদা (রাঃ) যখনই সালাত আদায় করার ইচ্ছা করতেন তখনই সালমান (রাঃ) তাকে বাধা দিতেন। যখন সওম পালন করতে চাইতেন বাধা দিতেন। তখন আবুদ দারদা (রাঃ) বললেনঃ তুমি আমাকে আমার প্রতিপালকের জন্য সওম পালন করতে এবং সালাত আদায় করতে বাধা দিচ্ছ? এ সময় [সালমান (রাঃ)] বললেনঃ তোমার চোখের তোমার উপর হক রয়েছে, তোমার পরিবারের তোমার উপর হক রয়েছে। সওম পালন করুন এবং ছাডুন। সালাত আদায় করুন এবং ঘুমান। রসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম-এর নিকট এ সংবাদ পৌছলে তিনি বলেনঃ ....।

আমি (আলবানী) বলছিঃ এটি মুরসাল। এ কথা বলার দ্বারাই হাফিয ইবনু হাজার "ফাতহুল বারী" গ্রন্থে (৪/২১১) সমস্যা বর্ণনা করেছেন। এটিকে মুসনাদ হিসেবেও বর্ণনা করা হয়েছে। আবু নুয়াইম “আলহিলইয়্যাহ” গ্রন্থে (১/১৮৭) আব্দুল্লাহ ইবনু মুহাম্মাদ ইবনু আতা হতে, তিনি আহমাদ ইবনু আমর বাযযার হতে, তিনি সারিউ ইবনু মুহাম্মাদ কূফী হতে, তিনি কাবীসাহ ইবনু উকবাহ হতে, তিনি আম্মার ইবনু রুযাইক হতে, তিনি আবূ সালেহ হতে, তিনি উম্মুদ দারাদা হতে, তিনি আবুদ দারাদা (রাঃ) হতে বর্ণনা করেছেন।

অনুরূপভাবেই ঘটনা বর্ণনা করা হয়েছে। কিন্তু আলোচ্য হাদীসের ভাষায় ভিন্নতা রয়েছেঃ لقد أوتي سلمان من العلم "সালামানকে জ্ঞান দান করা হয়েছে।"

আবু নুয়াইম বলেনঃ আমাশ এটিকে ইবনু শামর ইবনু আতিয়্যাহ হতে, তিনি শাহর ইবনু হাওশাব হতে, তিনি উম্মুদ দারদা হতে বর্ণনা করেছেন।

আমি (আলবানী) বলছিঃ ত্ববারানী “আলআওসাত” গ্রন্থে (২/১৮২/১, নং ৭৭৮৭) মুওসূল হিসেবে হাসান ইবনু জাবলা সূত্রে সা’দ ইবনুস সালত হতে, তিনি আ’মাশ হতে, তিনি শামর ইবনু আতিয়্যাহ হতে, তিনি শাহর ইবনু হাওশাব হতে, তিনি উম্মুদ দারদা হতে বর্ণনা করেছেন। তিনি বলেনঃ لقد أشبع من العلم ... তাকে কিছু জ্ঞান দিয়ে পরিতৃপ্ত করা হয়েছে।

ত্ববারানী বলেনঃ এটিকে আমাশ হতে সা’দ ইবনুস সালত ছাড়া অন্য কেউ বর্ণনা করেননি। হাসান ইবনু জাবলা এটিকে এককভাবে বর্ণনা করেছেন।

আমি (আলবানী) বলছিঃ তার (ইবনু জাবলার) জীবনী পাচ্ছি না। হাইসামী (৯/৩৪৪) বলেনঃ আমি তাকে চিনি না। আর বাকী বর্ণনাকারীগণ নির্ভরযোগ্য।

আর বর্ণনাকারী শাহর এর ব্যাপারে মতভেদ করা হয়েছে। সমালোচনাকারীদের ভাষ্যগুলো থেকে বাহ্যিকভাবে বুঝা যায় যে, তিনি মন্দ হেফযের অধিকারী ছিলেন। ইবনু আদী তার (শাহর এর) কতিপয় মুনকার হাদীস উল্লেখ করেছেনঃ যেমন (لوكان العلم بالثريا) অথচ সঠিক হচ্ছে (لوكان الإيمان) অন্য বর্ণনায় এসেছেঃ (لوكان الدين) তার এ হাদীস সম্পর্কে (২০৫৪) আলোচনা আসবে। অতঃপর ইবনু আদী তার জীবনীর শেষে বলেছেনঃ শাহর হাদীসের ব্যাপারে শক্তিশালী নন। তিনি সেই দলের অন্তর্ভুক্ত যার হাদীস দ্বারা দলীল গ্রহণ করা হয় না এবং শিক্ষা নেয়াও হয় না। এক বর্ণনায় এসেছেঃ (سلمان أفقه منك) সালমান তোমার চেয়ে বেশী সমঝদার।

মোটকথাঃ এসব সূত্রগুলো দুর্বল। বর্ণনাকারী শাহর দুর্বল আর হাসান ইবনু জাবলা মাজহুল হওয়ার কারণে ।

সারসংক্ষেপঃ হাদীসটির বর্ণনাকারীগণ হাদীসের বাক্যটি আয়ত্তে আনার ক্ষেত্রে ইযতিরাবে পড়েছেন এবং অন্যান্য ভাষার বিরোধিতা করে বর্ণনা করেছেন।

আর সবগুলোই ইমাম বুখারী কর্তৃক বর্ণনাকৃত ঘটনার শেষে যে ভাষায় হাদীসটি উল্লেখ করা হয়েছে তার বিরোধী। হাদীসের শেষে আবুদ দারদা (রাঃ)-কে রসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেনঃ সালমান সত্য বলেছে (বুখারীর বর্ণনায়)।

এ সহীহ বর্ণনা আমাদেরকে আলোচ্য ভাষার হাদীসটি সাব্যস্ত হওয়ার ব্যাপারে সন্দেহে ফেলেছে। বিশেষ করে অধ্যায়ে আলোচ্য ভাষাটির ব্যাপারে।

لقد أشبع سلمان علما
ضعيف

-

رواه ابن سعد (4 / 84 - 85) بسند صحيح عن أبي صالح قال: نزل
سلمان على أبي الدرداء، وكان أبو الدرداء إذا أراد أن يصلي منعه سلمان،
وإذا أراد أن يصوم منعه، فقال: أتمنعني أن أصوم لربي وأصلي لربي؟! فقال: إن
لعينك عليك حقا، وإن لأهلك عليك حقا، فصم وأفطر، وصل ونم، فبلغ ذلك
رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال: فذكره. قلت: وهذا مرسل، وبه أعله
الحافظ في " فتح الباري " (4 / 211) ، وقد روي مسندا، فقال أبو نعيم في "
الحلية " (1 / 187) : حدثنا عبد الله بن محمد بن عطاء حدثنا أحمد بن عمرو
البزار (كذا) : حدثنا السري بن محمد الكوفي حدثنا قبيصة بن عقبة حدثنا عمار
بن رزيق (الأصل: زريق) عن أبي صالح عن أم الدرداء عن أبي الدرداء: أن سلمان
دخل عليه ... فذكر القصة نحوه، لكنه خالفه في لفظ حديث الترجمة، فقال: " لقد
أوتي سلمان من العلم ". وقال أبو نعيم: " رواه الأعمش عن ابن شمر بن عطية (كذا الأصل) عن شهر بن حوشب عن أم الدرداء ". قلت: وصله الطبراني في " الأوسط
" (2 / 182 / 1 رقم 7787 - بترقيمي) من طريق الحسن بن جبلة: أخبرنا سعد بن
الصلت عن الأعمش عن شمر بن عطية عن شهر بن حوشب عن أم الدرداء قالت: أتاني
سلمان الفارسي يسلم علي، وعليه عباءة قطوانية مرتديا بها، فطرحت له وسادة
فلم يردها، ولف عباءته فجلس عليها، فقال: بحسبك ما بلغك المحل، ثم حمد
الله ساعته وكبر وصلى على النبي صلى الله عليه وسلم، ثم قال: أين صاحبك
؟ يعني أبا الدرداء. فقلت: هو في المسجد، فانطلق إليه، ثم أقبلا جميعا وقد
اشترى أبو الدرداء لحما بدرهم فهو في يده معلقة، فقال: يا أم الدرداء اخبزي
واطبخي، ففعلنا، ثم أتينا سلمان بالطعام، فقال أبو الدرداء: كل مع أم
الدرداء فإني صائم! فقال سلمان: لا آكل حتى تأكل، فأفطر أبو الدرداء، وأكل
معه، فلما كانت الساعة التي يقوم فيها أبو الدرداء ذهب ليقوم أجلسه سلمان،
فقال أبو الدرداء: أتنهاني عن عبادة ربي؟! فقال سلمان: إن لعينك عليك حقا
، وإن لأهلك نصيبا، فمنعه، حتى إذا كان وجه الصبح، قاما، فركعا ركعات
وأوترا، ثم خرجا إلى صلاة الصبح، فذكرا أمرهما للنبي صلى الله عليه وسلم
فقال: " ما لسلمان ثكلته أمه؟ لقد أشبع من العلم ". وقال الطبراني: " لم
يروه عن الأعمش إلا سعد بن الصلت، تفرد به الحسن بن جبلة ". قلت: لم أجد له
ترجمة. وقال الهيثمي (9 / 344) : " ولم أعرفه، وبقية رجاله ثقات "! كذا
قال! وشهر مختلف فيه، والظاهر من أقوال جارحيه أنه كان سيء الحفظ، وقد
ذكر له ابن عدي عدة مناكير منها: " لوكان العلم بالثريا.. ". والصحيح
المحفوظ: " لوكان الإيمان.... ". وفي رواية " لوكان الدين ...
وسيأتي حديثه المشار إليه برقم (2054) ، ثم قال ابن عدي في آخر ترجمته
وشهر ليس بالقوي في الحديث، وهو ممن لا يحتج بحديثه، ولا يعتبر به
وبالجملة، فهذه الطريق ضعيفة، لضعف شهر، وجهالة الحسن بن جبلة، والإسناد
الذي قبله عن أبي صالح موصولا أصح منه، لولا أني لم أعرف عبد الله بن محمد بن
عطاء شيخ أبي نعيم. وشيخه أحمد بن عمرو البزاز (أظنه البزار بالراء بعد
الزاي) وهو الحافظ المشهور صاحب المسند المعروف به، وهو ثقة في حفظه شيء
وشيخه السري بن محمد، لم أعرفه، لكني أظن أن (محمد) محرف من (يحيى)
، فهو السري بن يحيى الكوفي، فقد ذكره ابن أبي حاتم (2 / 1 / 285) فيمن روى
عن قبيصة، وقال: " وكان صدوقا ". وذكره ابن حبان في " الثقات " (8 / 302
. ثم إن لفظ هذا الإسناد الأصح أقرب إلى الصواب من لفظ حديث الترجمة، وقريب
منه ما ذكره الحافظ في ترجمة سلمان من " الإصابة " أن النبي صلى الله عليه وسلم
قال لأبي الدرداء: " سلمان أفقه منك ". ولم يذكر من أخرجه. والخلاصة، أن
الرواة اضطربوا في ضبط هذه الجملة من الحديث، فأقربها ما عند الحافظ، ثم لفظ
رواية أبي صالح المسندة، ثم لفظ حديث الترجمة، بل هو منكر عندي لما فيه من
المبالغة، ولمخالفته للألفاظ الأخرى. بل هي كلها مخالفة لرواية البخاري لهذه
القصة في " صحيحه " (1968) بنحوما تقدم، وفي آخرها قوله صلى الله عليه
وسلم لأبي الدرداء: " صدق سلمان ". فهذا مما يجعلنا نرتاب في ثبوت شيء من
الألفاظ المذكورة، وبخاصة لفظ الترجمة والله سبحانه وتعالى أعلم

لقد اشبع سلمان علما ضعيف - رواه ابن سعد (4 / 84 - 85) بسند صحيح عن ابي صالح قال: نزل سلمان على ابي الدرداء، وكان ابو الدرداء اذا اراد ان يصلي منعه سلمان، واذا اراد ان يصوم منعه، فقال: اتمنعني ان اصوم لربي واصلي لربي؟! فقال: ان لعينك عليك حقا، وان لاهلك عليك حقا، فصم وافطر، وصل ونم، فبلغ ذلك رسول الله صلى الله عليه وسلم فقال: فذكره. قلت: وهذا مرسل، وبه اعله الحافظ في " فتح الباري " (4 / 211) ، وقد روي مسندا، فقال ابو نعيم في " الحلية " (1 / 187) : حدثنا عبد الله بن محمد بن عطاء حدثنا احمد بن عمرو البزار (كذا) : حدثنا السري بن محمد الكوفي حدثنا قبيصة بن عقبة حدثنا عمار بن رزيق (الاصل: زريق) عن ابي صالح عن ام الدرداء عن ابي الدرداء: ان سلمان دخل عليه ... فذكر القصة نحوه، لكنه خالفه في لفظ حديث الترجمة، فقال: " لقد اوتي سلمان من العلم ". وقال ابو نعيم: " رواه الاعمش عن ابن شمر بن عطية (كذا الاصل) عن شهر بن حوشب عن ام الدرداء ". قلت: وصله الطبراني في " الاوسط " (2 / 182 / 1 رقم 7787 - بترقيمي) من طريق الحسن بن جبلة: اخبرنا سعد بن الصلت عن الاعمش عن شمر بن عطية عن شهر بن حوشب عن ام الدرداء قالت: اتاني سلمان الفارسي يسلم علي، وعليه عباءة قطوانية مرتديا بها، فطرحت له وسادة فلم يردها، ولف عباءته فجلس عليها، فقال: بحسبك ما بلغك المحل، ثم حمد الله ساعته وكبر وصلى على النبي صلى الله عليه وسلم، ثم قال: اين صاحبك ؟ يعني ابا الدرداء. فقلت: هو في المسجد، فانطلق اليه، ثم اقبلا جميعا وقد اشترى ابو الدرداء لحما بدرهم فهو في يده معلقة، فقال: يا ام الدرداء اخبزي واطبخي، ففعلنا، ثم اتينا سلمان بالطعام، فقال ابو الدرداء: كل مع ام الدرداء فاني صاىم! فقال سلمان: لا اكل حتى تاكل، فافطر ابو الدرداء، واكل معه، فلما كانت الساعة التي يقوم فيها ابو الدرداء ذهب ليقوم اجلسه سلمان، فقال ابو الدرداء: اتنهاني عن عبادة ربي؟! فقال سلمان: ان لعينك عليك حقا ، وان لاهلك نصيبا، فمنعه، حتى اذا كان وجه الصبح، قاما، فركعا ركعات واوترا، ثم خرجا الى صلاة الصبح، فذكرا امرهما للنبي صلى الله عليه وسلم فقال: " ما لسلمان ثكلته امه؟ لقد اشبع من العلم ". وقال الطبراني: " لم يروه عن الاعمش الا سعد بن الصلت، تفرد به الحسن بن جبلة ". قلت: لم اجد له ترجمة. وقال الهيثمي (9 / 344) : " ولم اعرفه، وبقية رجاله ثقات "! كذا قال! وشهر مختلف فيه، والظاهر من اقوال جارحيه انه كان سيء الحفظ، وقد ذكر له ابن عدي عدة مناكير منها: " لوكان العلم بالثريا.. ". والصحيح المحفوظ: " لوكان الايمان.... ". وفي رواية " لوكان الدين ... وسياتي حديثه المشار اليه برقم (2054) ، ثم قال ابن عدي في اخر ترجمته وشهر ليس بالقوي في الحديث، وهو ممن لا يحتج بحديثه، ولا يعتبر به وبالجملة، فهذه الطريق ضعيفة، لضعف شهر، وجهالة الحسن بن جبلة، والاسناد الذي قبله عن ابي صالح موصولا اصح منه، لولا اني لم اعرف عبد الله بن محمد بن عطاء شيخ ابي نعيم. وشيخه احمد بن عمرو البزاز (اظنه البزار بالراء بعد الزاي) وهو الحافظ المشهور صاحب المسند المعروف به، وهو ثقة في حفظه شيء وشيخه السري بن محمد، لم اعرفه، لكني اظن ان (محمد) محرف من (يحيى) ، فهو السري بن يحيى الكوفي، فقد ذكره ابن ابي حاتم (2 / 1 / 285) فيمن روى عن قبيصة، وقال: " وكان صدوقا ". وذكره ابن حبان في " الثقات " (8 / 302 . ثم ان لفظ هذا الاسناد الاصح اقرب الى الصواب من لفظ حديث الترجمة، وقريب منه ما ذكره الحافظ في ترجمة سلمان من " الاصابة " ان النبي صلى الله عليه وسلم قال لابي الدرداء: " سلمان افقه منك ". ولم يذكر من اخرجه. والخلاصة، ان الرواة اضطربوا في ضبط هذه الجملة من الحديث، فاقربها ما عند الحافظ، ثم لفظ رواية ابي صالح المسندة، ثم لفظ حديث الترجمة، بل هو منكر عندي لما فيه من المبالغة، ولمخالفته للالفاظ الاخرى. بل هي كلها مخالفة لرواية البخاري لهذه القصة في " صحيحه " (1968) بنحوما تقدم، وفي اخرها قوله صلى الله عليه وسلم لابي الدرداء: " صدق سلمان ". فهذا مما يجعلنا نرتاب في ثبوت شيء من الالفاظ المذكورة، وبخاصة لفظ الترجمة والله سبحانه وتعالى اعلم
হাদিসের মানঃ যঈফ (Dai'f)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
যঈফ ও জাল হাদিস
১/ বিবিধ