পরিচ্ছেদঃ
১২৬৩। হে মানুষ! তোমাদের মধ্য থেকে যে (ব্যক্তি) কোন কর্মের দায়িত্ব পালন করবে, অতঃপর মুসলিমদের প্রয়োজনকে উপেক্ষা করে তার দরজাকে বন্ধ করে দিবে আল্লাহ্ তা’আলা জান্নাতের দরজা দিয়ে তার প্রবেশ করাকে বন্ধ করে দিবেন। আর যে ব্যক্তির লক্ষ্যই হবে দুনিয়া (অর্জন করা), আল্লাহ্ তা’আলা তার জন্য দাসীদেরকে হারাম করে দিবেন। কারণ আমাকে প্রেরণ করা হয়েছে বিনষ্ট দুনিয়া দিয়ে, দুনিয়ার অট্টালিকা দিয়ে আমাকে প্রেরণ করা হয়নি।
হাদীসটি দুর্বল।
হাদীসটি ত্ববারানী “আল-মুজামুল কাবীর” গ্রন্থে জাবরূন ইবনু ঈসা মাগরিবী হতে, তিনি ইয়াহইয়া ইবনু সুলাইমান জুফরী হতে, তিনি ফুযায়েল ইবনু আয়ায হতে, তিনি সুফইয়ান সাওরী হতে, তিনি আওন ইবনু আবী জুহায়ফাহ হতে, তিনি তার পিতা হতে বর্ণনা করেছেন রসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেনঃ ...।
আমি (আলবানী) বলছিঃ এ সনদটি দুর্বল। জাবরূন ব্যতীত সকল বর্ণনাকারীগণ নির্ভরযোগ্য এবং বুখারী ও মুসলিমের বর্ণনাকারী।
ত্ববারানী বলেনঃ জাবরূন সম্পর্কে আমি ভাল-মন্দ কিছুই অবগত নই।
হায়সামী বলেনঃ ইমাম ত্ববারানী তার শাইখ জাবরূন ইবনু ঈসা হতে, তিনি ইয়াহইয়া ইবনু সুলাইমান আল-জুফারী হতে বর্ণনা করেছেন। আমি তাদের দু’জনকেই চিনি না। তারা দু’জন ব্যতীত অন্য বর্ণনাকারীগণ সহীহ বর্ণনাকারী।
হাফিয ইবনু হাজার বলেনঃ হাদীসটি সহীহ নয়। জাবরূন হাদীসের ক্ষেত্রে খুবই দুর্বল।
يا أيها الناس من ولي منكم عملا فحجب بابه عن ذي حاجة المسلمين حجبه الله أن يلج باب الجنة، ومن كانت الدنيا نهمته حرم الله عليه جواري، فإني بعثت بخراب الدنيا، ولم أبعث بعمارتها
ضعيف
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رواه الطبراني في " الكبير ": حدثنا جبرون بن عيسى المغربي: حدثنا يحيى بن سليمان الجعفري: حدثنا فضيل بن عياض عن سفيان الثوري عن عون بن أبي جحيفة عن
أبيه: أن معاوية بن أبي سفيان ضرب على الناس بعثا، فخرجوا، فرجع أبو الدحداح
فقال له معاوية: ألم تكن خرجت مع الناس؟ قال: بلى، ولكني سمعت من رسول الله صلى الله عليه وسلم حديثا فأحببت أن أضعه عندك مخافة ألا تلقاني، سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: فذكره
قلت: وهذا سند ضعيف، رجاله كلهم ثقات رجال الشيخين غير جبرون، قال ابن
ماكولا في " الإكمال " (3/208) : " توفي سنة أربع وتسعين ومائتين
والجعفري، أورده السمعاني في مادة (الجفري) بضم الجيم وسكون الفاء، وهي
بناحية البصرة، ثم ساق جماعة ينسبون إليها، ثم قال
" وأبو زكريا يحيى بن سليمان الإفريقي المعروف بالجفري نسبه في قريش، وظني
أنه موضع بإفريقية، والله أعلم، حدث، وآخر من حدث عنه جبرون بن عيسى بن
يزيد، توفي سنة 237
وأما الذهبي فأورده في " المشتبه ": " الحفري " بحاء مضمومة وقال
" عن فضيل بن عياض وعباد بن عبد الصمد، وعنه جبرون بن عيسى
وكذلك وقع في نسخة مخطوطة جيدة من " الميزان " (الحفري) بالمهملة المضمومة
وقال: " ما علمت به بأسا "، ووقع في " الميزان " المطبوع في مصر سنة (1325) " الجفري " بالجيم، وهو تصحيف لمخالفته المخطوطة و" المشتبه "، وإن كان
هو الموافق للصواب، فقد ذكر الحافظ ابن ناصر الدين في " التوضيح " (1/142/2)
أن الذهبي تبع ابن ماكولا والفرضي في ضبطه بضم الحاء المهملة. ثم قال
" وقد وجدته في " تاريخ ابن يونس " بخط الحافظ أبي القاسم بن عساكر وسماعه
على الحافظ أبي بكر بن أبي نصر اللفتواني الأصبهاني وعليه خطه، وجدته
الجفري بالجيم منقوطة مضمومة وكذلك وجدته في " المستخرج " لأبي القاسم بن
منده، وهو الأشبه بالصواب، ولعله منسوب إلى " جفرة عتيب " اسم قبيلة في
بلاد المغرب
ثم ذكر الحافظ ابن ناصر الدين أن يحيى بن سليمان هذا روى عنه أيضا ابنه
عبد الله بن يحيى، ولم يذكر فيه تجريحا ولا تعديلا، فالرجل عندي مستور وإن
قال فيه الذهبي: " ما علمت به بأسا " كما سبق، ولعل ابن حبان أورده في "
كتاب الثقات "، فقد رأيت المنذري يشير إلى توثيقه، فقد قال في " الترغيب " (3/142) عقب هذا الحديث: " رواه الطبراني، ورواته ثقات، إلا شيخه جبرون بن عيسى فإني لم أقف فيه على
جرح ولا تعديل
وأما الهيثمي فقال في " المجمع " (5/211) : رواه الطبراني عن شيخه جبرون بن عيسى عن يحيى بن سليمان الجفري ولم أعرفهما
، وبقية رجاله رحال الصحيح
فهذا يشعر أنه لم يره في " ثقات ابن حبان ". فالله أعلم
قلت: ولعل سبب هذا الاختلاف، إنما هو اختلاف وجهة نظرهما في الذي ترجم له ابن حبان في " الثقات " هل هو هذا أم غيره؟ وقد وجدت في " أتباع التابعين
منه المجلد التاسع ترجمتين، أحدهما: يحيى بن سلام الإفريقي المصري (ص 261)، والأخرى يحيى بن سليمان الجعفي (ص 263) ، وهذا مترجم في " التهذيب
وليس بظاهر أن أحدهما هو (الجفري) . فالله أعلم
ثم رأيت الحافظ ابن حجر أورد الحديث في ترجمة أبي الدحداح من " الإصابة " من
رواية أبي نعيم أيضا، ثم قال: ولا يصح، جبرون واهي الحديث