১০৫৬

পরিচ্ছেদঃ

১০৫৬। যে ব্যক্তি মিথ্যা বলা ছেড়ে দিবে এমতাবস্থায় যে সে তাতে বাতিলের উপর ছিল, তার জন্য জান্নাতের এক ধারে একটি অট্টালিকা তৈরি করা হবে। যে ব্যক্তি ঝগড়াকে ছেড়ে দিবে এমতাবস্থায় যে সে তাতে হকপন্থী ছিল তার জন্য জান্নাতের মধ্য স্থানে একটি অট্টালিকা তৈরি করা হবে। যে ব্যক্তি তার চরিত্রকে সুন্দর করবে তার জন্য জান্নাতের উচ্চ স্থানে একটি অট্টালিকা তৈরি করা হবে।

হাদীসটি এভাবে মুনকার।

এটি তিরমিযী তার “সুনান” গ্রন্থে (১/৩৫৯), ইবনু মাজাহ (নং ৫১), খারায়েতী “মাকারেমুল আখলাক” গ্রন্থে (পৃঃ ৮) ও ইবনু আদী (২/১৭০) সালামাহ ইবনু আরদান আল-লাইসী হতে, তিনি আনাস ইবনু মালেক (রাঃ) হতে মারফূ’ হিসেবে বর্ণনা করেছেন।

তিরমিযী বলেনঃ এ হাদীসটি হাসান। একমাত্র সালামাহ ইবনু অরাদানের হাদীস হতেই এটিকে চিনি।

আমি (আলবানী) বলছিঃ তিনি (সালামাহ) জামহুরে আয়েম্মার নিকট দুর্বল। এ কারণে ইবনু হাজার “আত-তাকরীব” গ্রন্থে দৃঢ়তার সাথে তাকে দুর্বল আখ্যা দিয়েছেন। হাফিয যাহাবীও তাকে "আয-যুয়াফা" গ্রন্থে উল্লেখ করে বলেছেনঃ তাকে দারাকুতনী প্রমুখও দুর্বল আখ্যা দিয়েছেন।

আমি বলছিঃ তাকে হাকিমও দুর্বল আখ্যা দিয়েছেন। তিনি বলেনঃ আনাস (রাঃ) হতে তার অধিকাংশ হাদীস মুনকার।

অতএব তার হাদীসটি যখন আনাস (রাঃ) হতে তখন তার হাদীস কিভাবে হাসান। এছাড়া তিনি এককভাবে এ হাদীসটি বর্ণনা করেছেন। যেমনটি ইমাম তিরমিযী ইঙ্গিত দিয়েছেন।

আবু উমামাহ (রাঃ) এবং মুয়ায ইবনু জাবাল (রাঃ) হতে দুটি ভিন্ন সনদে হাদীসটি বর্ণিত হয়েছে যার একটি অন্যটিকে শক্তিশালী করে। তবে সে হাদীসটির ভাষা আলোচ্য হাদীসটির প্রথম ও দ্বিতীয় অংশের ভাষা হতে ভিন্ন। যা প্রমাণ করছে যে সালামার উপর হাদীসটির ভাষা উলট-পালট হয়ে গেছে। "সিলসালাতুল আহাদীসিস সহীহাহ" গ্রন্থের (২৭৩ নং) হাদীস দেখুন।
সহীহ হাদীসের ভাষাটি নিম্নরূপঃ

أنا زعيم بيت في ربض الجنة لمن ترك المراء وإن كان محقا، وبيت في وسط الجنة لمن ترك الكذب وإن كان مازحا، وبيت في أعلى الجنة لمن حسن خلق

আবূ উমামাহ (রাঃ) হতে বর্ণিত হয়েছে, রসূল সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেনঃ আমি জান্নাতের ধারে সে ব্যক্তির জন্য একটি ঘরের যিম্মাদার যে ব্যক্তি হকপন্থী হওয়া সত্ত্বেও ঝগড়া ত্যাগ করে। আমি সেই ব্যক্তির জন্য জান্নাতের মধ্যে একটি ঘরের যিম্মাদার যে তামাশা করে হলেও মিথ্যা বলা ত্যাগ করে। আর আমি সেই ব্যক্তির জন্য জান্নাতের উঁচু স্থানে একটি ঘরের যিম্মাদার যে তার চরিত্রকে সুন্দর করে। [হাদীসটি পর্যায়ভুক্ত]।

হাফিয মুনযেরীর নিকট আনাস (রাঃ)-এর হাদীস আবু উমামার হাদীসের সাথে গোলমেলে হয়ে গেছে।

من ترك الكذب وهو باطل بني له قصر في ربض الجنة، ومن ترك المراء وهو محق بني له في وسطها، ومن حسن خلقه بني له في أعلاها
منكر بهذا السياق

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أخرجه الترمذي في " سننه " (1/359 - بولاق) وابن ماجه (رقم 51) والخرائطي في " مكارم الأخلاق " (ص 8) وابن عدي (170/2) عن سلمة بن وردان الليثي عن أنس بن مالك مرفوعا به، وقال الترمذي
هذا حديث حسن، لا نعرفه إلا من حديث سلمة بن وردان عن أنس
قلت: وهو ضعيف عند جمهور الأئمة، ولذلك جزم بضعفه الحافظ في التقريب " وأورده الذهبي في " الضعفاء " وقال
ضعفه الدارقطني وغيره
قلت: وممن ضعفه الحاكم فقال: حديثه عن أنس مناكير أكثرها
قلت: فأنى لحديثه هذا الحسن وهو عن أنس، وقد تفرد به كما يشير إلى ذلك الترمذي نفسه، لا سيما وقد روي الحديث عن أبي أمامة ومعاذ بن جبل بسندين يقوي أحدهما الآخر بلفظ مغاير لهذا الحديث في فقرته الأولى والثانية، مما يدل على أن سلمة قد انقلب عليه الحديث، فراجع بيان ذلك في " سلسلة الأحاديث
الصحيحة " (رقم - 273)
ومن المهم هنا التنبيه على أوهام وقعت للحافظ المنذري في هذا الحديث فقال في " الترغيب " (1/80)
عن أبي أمامة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: " من ترك المراء وهو مبطل بني له بيت في ربض الجنة، ومن تركه وهو محق بني له في وسطها.. " رواه أبو داود والترمذي واللفظ له وابن ماجه والبيهقي، وقال الترمذي: حديث حسن
والأوهام التي فيه
أولا: أن الحديث بهذا السياق ليس من حديث أبي أمامة، وإنما من حديث أنس
ثانيا: أنه ليس عند أبي داود من حديث أنس، وإنما من حديث أبي أمامة، وقد ذكره المنذري في مكان آخر من كتابه (3/257 - 258) على الصواب
ثالثا: ليس في حديث أنس ذكر " المراء " في الفقرة الأولى منه، بل فيه " الكذب "، وإنما هو في الفقرة الثانية منه كما رأيت، بخلاف حديث أبي أمامة فهو على العكس من ذلك بلفظ
أنا زعيم ببيت في ربض الجنة لمن ترك المراء وإن كان محقا، وبيت في وسط الجنة لمن ترك الكذب وإن كان مازحا
وتوضيح ذلك في المكان المشار إليه من " الأحاديث الصحيحة
فكأن الحافظ المنذري رحمه الله اختلط عليه حديث أنس بحديث أبي أمامة فكان من ذلك حديث آخر لا وجود له في الدنيا! والمعصوم من عصمه الله تعالى

من ترك الكذب وهو باطل بني له قصر في ربض الجنة، ومن ترك المراء وهو محق بني له في وسطها، ومن حسن خلقه بني له في اعلاها منكر بهذا السياق - اخرجه الترمذي في " سننه " (1/359 - بولاق) وابن ماجه (رقم 51) والخراىطي في " مكارم الاخلاق " (ص 8) وابن عدي (170/2) عن سلمة بن وردان الليثي عن انس بن مالك مرفوعا به، وقال الترمذي هذا حديث حسن، لا نعرفه الا من حديث سلمة بن وردان عن انس قلت: وهو ضعيف عند جمهور الاىمة، ولذلك جزم بضعفه الحافظ في التقريب " واورده الذهبي في " الضعفاء " وقال ضعفه الدارقطني وغيره قلت: وممن ضعفه الحاكم فقال: حديثه عن انس مناكير اكثرها قلت: فانى لحديثه هذا الحسن وهو عن انس، وقد تفرد به كما يشير الى ذلك الترمذي نفسه، لا سيما وقد روي الحديث عن ابي امامة ومعاذ بن جبل بسندين يقوي احدهما الاخر بلفظ مغاير لهذا الحديث في فقرته الاولى والثانية، مما يدل على ان سلمة قد انقلب عليه الحديث، فراجع بيان ذلك في " سلسلة الاحاديث الصحيحة " (رقم - 273) ومن المهم هنا التنبيه على اوهام وقعت للحافظ المنذري في هذا الحديث فقال في " الترغيب " (1/80) عن ابي امامة رضي الله عنه قال: قال رسول الله صلى الله عليه وسلم: " من ترك المراء وهو مبطل بني له بيت في ربض الجنة، ومن تركه وهو محق بني له في وسطها.. " رواه ابو داود والترمذي واللفظ له وابن ماجه والبيهقي، وقال الترمذي: حديث حسن والاوهام التي فيه اولا: ان الحديث بهذا السياق ليس من حديث ابي امامة، وانما من حديث انس ثانيا: انه ليس عند ابي داود من حديث انس، وانما من حديث ابي امامة، وقد ذكره المنذري في مكان اخر من كتابه (3/257 - 258) على الصواب ثالثا: ليس في حديث انس ذكر " المراء " في الفقرة الاولى منه، بل فيه " الكذب "، وانما هو في الفقرة الثانية منه كما رايت، بخلاف حديث ابي امامة فهو على العكس من ذلك بلفظ انا زعيم ببيت في ربض الجنة لمن ترك المراء وان كان محقا، وبيت في وسط الجنة لمن ترك الكذب وان كان مازحا وتوضيح ذلك في المكان المشار اليه من " الاحاديث الصحيحة فكان الحافظ المنذري رحمه الله اختلط عليه حديث انس بحديث ابي امامة فكان من ذلك حديث اخر لا وجود له في الدنيا! والمعصوم من عصمه الله تعالى
হাদিসের মানঃ মুনকার (সহীহ হাদীসের বিপরীত)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
যঈফ ও জাল হাদিস
১/ বিবিধ