২৮৬

পরিচ্ছেদঃ

২৮৬। আবু ফিরাস বলেন, উমার (রাঃ) একটি ভাষণে বললেনঃ হে জনতা, শুনে রাখ, যখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম আমাদের মধ্যে ছিলেন এবং যখন ওহী নাযিল হতো তখনই আমরা তোমাদেরকে সঠিকভাবে চিনতাম। কিন্তু এখন রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম চলে গেছেন, ওহীও বন্ধ। আমরা তোমাদেরকে যা বলবো, তা দ্বারাই তোমাদেরকে চিনবো। তোমাদের মধ্যে যে উত্তম মনোভাব ব্যক্ত করবে, তার সম্পর্কে ভালো ধারণা পোষণ করবো এবং তার ভিত্তিতে তাকে ভালোবাসবো। আর যে খারাপ মনোভাব ব্যক্ত করবে, তার প্রতি খারাপ ধারণা পোষণ করবো এবং তার ভিত্তিতেই তার প্রতি ক্রোধ পোষণ করবো। তোমাদের মনের গোপন অবস্থা শুধু তোমাদের ও আল্লাহর নিকট উম্মুক্ত। শুনে রাখ, আমার নিকট কখনো কখনো এমন মুহুর্ত এসেছে, যখন আমি ভেবেছি যে, যে ব্যক্তি শুধু আল্লাহকে পাওয়ার জন্য এবং নিজের কাছে যা আছে, তাতে সন্তুষ্ট থাকার মনোভাব নিয়ে আল কুরআন পড়ে, সে আমার ধারণা মতে আখিরাতে সফলকাম।

জেনে রাখ, কিছু লোক আল কুরআন পড়ে এই উদ্দেশ্যে যে, তার বিনিময়ে জনগণের কাছে যে সম্পদ আছে, তা অর্জন করবে। সুতরাং তোমরা তোমাদের আল কুরআন পাঠ ও তোমাদের (অন্যান্য) কার্যকলাপের বিনিময়ে আল্লাহকে (আল্লাহর সন্তুষ্টি) চাও। জেনে রাখ, আমি আমার কর্মচারীদেরকে তোমাদের নিকট এজন্য পাঠাইনা যে, তোমাদের ত্বকে প্রহার করবে এবং তোমাদের সম্পদ হস্তগত করবে। আমি তাদেরকে তোমাদের নিকট শুধু এ জন্য পাঠাই যে, তারা তোমাদেরকে তোমাদের দীন ও সুন্নাত শেখাবে। তোমাদের কারো সাথে যদি এ ছাড়া অন্য কোন আচরণ করা হয়, তাহলে সে যেন সে ব্যাপারে আমার নিকট অভিযোগ পেশ করে। মহান আল্লাহর কসম যার হাতে আমার প্রাণ, তখন আমি অবশ্যই তার কাছ থেকে তার প্রতিশোধ নেব। সঙ্গে সঙ্গে আমর ইবনুল আস লাফ দিয়ে উঠে দাঁড়ালেন এবং বললেন, হে আমীরুল মুমিনীন, আপনি কি ভেবে দেখেছেন, কোন মুসলিম যদি কোন প্রজা গোষ্ঠীর দায়িত্বশীল হয় এবং তাদের মধ্য থেকে কেউ যদি কোন প্রজাকে কোন শাস্তি দেয়, তবে কি আপনি তার প্রতিশোধ নেবেন? উমার (রাঃ) বললেন, যে আল্লাহর হাতে উমারের প্রাণ তার কসম, আমি অবশ্যই তার প্রতিশোধ নেব। কারণ আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে প্রতিশোধ নিতে দেখেছি।

সাবধান, মুসলিমদেরকে প্রহার করো না, তাহলে তাদেরকে তোমরা অপমান করবে, তাদেরকে আগুন দিয়ে পুড়িও না, তাহলে তাদেরকে (ঈমানকে) পরীক্ষায় ফেলবে এবং তাদের অধিকার থেকে তাদেরকে বঞ্চিত করো না, তাহলে তাদেরকে কুফরের দিকে ঠেলে দেবে এবং তাদেরকে বন-জঙ্গলে নিক্ষেপ করোনা, তাহলে তাদেরকে নষ্ট করে ফেলবে।

[আল হাকেম, আবু দাউদ-৪৫৩৭, নাসায়ী-৩৪/৮]

حَدَّثَنَا إِسْمَاعِيلُ، أَخْبَرَنَا الْجُرَيْرِيُّ سَعِيدٌ، عَنْ أَبِي نَضْرَةَ، عَنْ أَبِي فِرَاسٍ، قَالَ: خَطَبَ عُمَرُ بْنُ الْخَطَّابِ فَقَالَ: يَا أَيُّهَا النَّاسُ، أَلَا إِنَّا إِنَّمَا كُنَّا نَعْرِفُكُمْ إِذْ بَيْنَ ظَهْرَانَيْنَا النَّبِيُّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَإِذْ يَنْزِلُ الْوَحْيُ، وَإِذْ يُنْبِئُنَا اللهُ مِنْ أَخْبَارِكُمْ، أَلَا وَإِنَّ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَدِ انْطَلَقَ، وَقَدِ انْقَطَعَ الْوَحْيُ، وَإِنَّمَا نَعْرِفُكُمْ بِمَا نَقُولُ لَكُمْ، مَنْ أَظْهَرَ مِنْكُمْ خَيْرًا ظَنَنَّا بِهِ خَيْرًا وَأَحْبَبْنَاهُ عَلَيْهِ، وَمَنْ أَظْهَرَ مِنْكُمْ لَنَا شَرًّا ظَنَنَّا بِهِ شَرًّا، وَأَبْغَضْنَاهُ عَلَيْهِ، سَرَائِرُكُمْ بَيْنَكُمْ وَبَيْنَ رَبِّكُمْ، أَلا إِنَّهُ قَدْ أَتَى عَلَيَّ حِينٌ وَأَنَا أَحْسِبُ أَنَّ مَنْ قَرَأَ الْقُرْآنَ يُرِيدُ اللهَ وَمَا عِنْدَهُ، فَقَدْ خُيِّلَ إِلَيَّ بِآخِرَةٍ أَلا إِنَّ رِجَالًا قَدْ قَرَؤُوهُ يُرِيدُونَ بِهِ مَا عِنْدَ النَّاسِ، فَأَرِيدُوا اللهَ بِقِرَاءَتِكُمْ، وَأَرِيدُوهُ بِأَعْمَالِكُم
أَلا إِنِّي وَاللهِ مَا أُرْسِلُ عُمَّالِي إِلَيْكُمْ لِيَضْرِبُوا أَبْشَارَكُمْ، وَلا لِيَأْخُذُوا أَمْوَالَكُمْ، وَلَكِنْ أُرْسِلُهُمْ إِلَيْكُمْ لِيُعَلِّمُوكُمْ دِينَكُمْ وَسُنَّتَكُمْ، فَمَنْ فُعِلَ بِهِ شَيْءٌ سِوَى ذَلِكَ فَلْيَرْفَعْهُ إِلَيَّ، فَوَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ إِذَاً لَأُقِصَّنَّهُ مِنْهُ، فَوَثَبَ عَمْرُو بْنُ الْعَاصِ، فَقَالَ: يَا أَمِيرَ الْمُؤْمِنِينَ، أَوَرَأَيْتَ إِنْ كَانَ رَجُلٌ مِنَ الْمُسْلِمِينَ عَلَى رَعِيَّةٍ، فَأَدَّبَ بَعْضَ رَعِيَّتِهِ، أَئِنَّكَ لَمُقْتَصُّهُ مِنْهُ؟ قَالَ: إِي وَالَّذِي نَفْسُ عُمَرَ بِيَدِهِ، إِذَاً لَأُقِصَّنَّهُ مِنْهُ، أَنَّى لا أُقِصَّنَّهُ مِنْهُ، وَقَدْ رَأَيْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يُقِصُّ مِنْ نَفْسِهِ؟ ألا لَا تَضْرِبُوا الْمُسْلِمِينَ فَتُذِلُّوهُمْ، وَلا تُجَمِّرُوهُمْ فَتَفْتِنُوهُمْ، وَلا تَمْنَعُوهُمْ حُقُوقَهُمْ فَتُكَفِّرُوهُمْ، وَلا تُنْزِلُوهُمُ الْغِيَاضَ فَتُضَيِّعُوهُمْ

أبو فِراس - وهو النهدي - لم يرو عنه غير أبي نضرة المنذر بن مالك، ولم يوثقه غير ابن حبان 5 / 585 وقال أبو زرعة: لا أعرفه. وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين
وأخرجه النسائي 8 / 34 من طريق إسماعيل بن إِبراهيم، بهذا الإسناد، مختصرا
وأخرجه الطيالسي (54) ، وهناد في " الزهد " (877) ، وابن عبد الحكم في " فتوح مصر " ص 167، وأبو داود (4537) والحاكم 4 / 439، والبيهقي 9 / 29 و42 من طرق عن الجريري، به. قال الحاكم: صحيح على شرط مسلم ووافقه الذهبي مع أن أبا فراس لم يخرج له مسلم
وأخرج البخاري (2641) مختصراً بنحوه عن الحكم بن نافع، عن شعيب، عن الزهري، حدثني حميد بن عبد الرحمن بن عوف أن عبد الله بن عتبة، قال: سمعت عمر بن الخطاب رضي الله عنه يقول: " أن ناساً كانوا يؤخذون بالوحي في عهد رسول الله صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وإن الوحي قد انقطع، وإنما نأخذكم الآن بما ظهر لنا من أعمالكم، فمن أظهر لنا خيراً أمناه وقربناه، وليس إِلينا من سريرته شيء، الله يحاسب سريرتَه، ومن أظهر لنا سوءاً لم نَأْمَنْه، ولم نصدقه، وإن قال: إن سريرته حسنة
الأبشار: جمع بشرة، وهي ظاهر الجلد
وقوله: " ولا تُجمِّروهم "، قال السندي: من التجمير - بالجيم والراء المهملة -، وتجمير الجيش: جمعهم في الثغور، وحَبْسهم عن العَوْد إلى أهليهم. فتكفروهم: أي تحملوهم على الكفران وعدمِ الرضا بكم، أو على الكفر بالله لظنهم أنه ما شرع الإنصاف في الدين. الغِياض: جمع غَيْضة - بفتح الغين - وهي الشجر الملتفُّ، قيل: لأنهم إذا نزلوها تفرقوا فيها، فتمكن منهم العدوُّ

حدثنا اسماعيل، اخبرنا الجريري سعيد، عن ابي نضرة، عن ابي فراس، قال: خطب عمر بن الخطاب فقال: يا ايها الناس، الا انا انما كنا نعرفكم اذ بين ظهرانينا النبي صلى الله عليه وسلم، واذ ينزل الوحي، واذ ينبىنا الله من اخباركم، الا وان النبي صلى الله عليه وسلم قد انطلق، وقد انقطع الوحي، وانما نعرفكم بما نقول لكم، من اظهر منكم خيرا ظننا به خيرا واحببناه عليه، ومن اظهر منكم لنا شرا ظننا به شرا، وابغضناه عليه، سراىركم بينكم وبين ربكم، الا انه قد اتى علي حين وانا احسب ان من قرا القران يريد الله وما عنده، فقد خيل الي باخرة الا ان رجالا قد قرووه يريدون به ما عند الناس، فاريدوا الله بقراءتكم، واريدوه باعمالكم الا اني والله ما ارسل عمالي اليكم ليضربوا ابشاركم، ولا لياخذوا اموالكم، ولكن ارسلهم اليكم ليعلموكم دينكم وسنتكم، فمن فعل به شيء سوى ذلك فليرفعه الي، فوالذي نفسي بيده اذا لاقصنه منه، فوثب عمرو بن العاص، فقال: يا امير المومنين، اورايت ان كان رجل من المسلمين على رعية، فادب بعض رعيته، اىنك لمقتصه منه؟ قال: اي والذي نفس عمر بيده، اذا لاقصنه منه، انى لا اقصنه منه، وقد رايت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقص من نفسه؟ الا لا تضربوا المسلمين فتذلوهم، ولا تجمروهم فتفتنوهم، ولا تمنعوهم حقوقهم فتكفروهم، ولا تنزلوهم الغياض فتضيعوهم ابو فراس - وهو النهدي - لم يرو عنه غير ابي نضرة المنذر بن مالك، ولم يوثقه غير ابن حبان 5 / 585 وقال ابو زرعة: لا اعرفه. وباقي رجاله ثقات رجال الشيخين واخرجه النساىي 8 / 34 من طريق اسماعيل بن ابراهيم، بهذا الاسناد، مختصرا واخرجه الطيالسي (54) ، وهناد في " الزهد " (877) ، وابن عبد الحكم في " فتوح مصر " ص 167، وابو داود (4537) والحاكم 4 / 439، والبيهقي 9 / 29 و42 من طرق عن الجريري، به. قال الحاكم: صحيح على شرط مسلم ووافقه الذهبي مع ان ابا فراس لم يخرج له مسلم واخرج البخاري (2641) مختصرا بنحوه عن الحكم بن نافع، عن شعيب، عن الزهري، حدثني حميد بن عبد الرحمن بن عوف ان عبد الله بن عتبة، قال: سمعت عمر بن الخطاب رضي الله عنه يقول: " ان ناسا كانوا يوخذون بالوحي في عهد رسول الله صلى الله عليه وسلم، وان الوحي قد انقطع، وانما ناخذكم الان بما ظهر لنا من اعمالكم، فمن اظهر لنا خيرا امناه وقربناه، وليس الينا من سريرته شيء، الله يحاسب سريرته، ومن اظهر لنا سوءا لم نامنه، ولم نصدقه، وان قال: ان سريرته حسنة الابشار: جمع بشرة، وهي ظاهر الجلد وقوله: " ولا تجمروهم "، قال السندي: من التجمير - بالجيم والراء المهملة -، وتجمير الجيش: جمعهم في الثغور، وحبسهم عن العود الى اهليهم. فتكفروهم: اي تحملوهم على الكفران وعدم الرضا بكم، او على الكفر بالله لظنهم انه ما شرع الانصاف في الدين. الغياض: جمع غيضة - بفتح الغين - وهي الشجر الملتف، قيل: لانهم اذا نزلوها تفرقوا فيها، فتمكن منهم العدو
হাদিসের মানঃ তাহকীক অপেক্ষমাণ
পুনঃনিরীক্ষণঃ
মুসনাদে আহমাদ
মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)