১৮৭

পরিচ্ছেদঃ

১৮৭। উমার ইবনুল খাত্তাব তালহা বিন উবাইদুল্লাহকে বললেন, কী ব্যাপার? রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের ইন্তিকালের পর থেকে দেখছি, তোমার এলোমেলো চুল ও ধুলি ধুসরিত মুখ। বোধ হয় তোমার চাচাতো ভাই আমীর নিযুক্ত হওয়ায় তোমার মন খারাপ। তালহা বললেন, আল্লাহর পানাহ চাই! আমি আপনাদের সবার চেয়ে এ ব্যাপারে অধিক উপযুক্ত যে, এমন মনোভাব পোষণ না করি। আসল ব্যাপার হলো, আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে বলতে শুনেছি যে, আমি এমন একটি বাণী জানি, ’যা কোন ব্যক্তি তার মৃত্যুকালে পাঠ করলে তার আত্মা বহির্গত হবার সময় একটা প্রবল সুঘ্রাণ ছড়াবে এবং কিয়ামতের দিন তাঁর আত্মা তাঁর জন্য একটা জ্যোতিতে পরিণত হবে। সেই বাণীটি কি, তা আমি রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া সাল্লামকে জিজ্ঞেস করিনি, আর তিনিও আমাকে জানাননি। ঐ জিনিসটাই আমার (মনের) মধ্যে ঢুকে আছে। (অর্থ্যাৎ ঐ বাণীটি কী সেই কথা ভাবতে ভাবতেই আমি এত বিহ্বল হয়ে পড়েছি।) উমার (রাঃ) বললেন, আরে ওটা তো আমি জানি। তালহা বলে উঠলেন, তাহলে তো আল্লাহর জন্য সকল প্রশংসা! সেটি কী? উমার (রাঃ) বললেন, সেটি হলো সেই কালেমা, যা তিনি তাঁর চাচা (আবু তালিব) কে বলেছিলেনঃ লা ইলাহা ইল্লাল্লাহ! তালহা বললেন, আপনি সত্যই বলেছেন।

[দেখুন, মুসনাদে আহমাদ হাদীস নং ২৫২]

حَدَّثَنَا عَبْدُ اللهِ بْنُ نُمَيْرٍ، عَنْ مُجَالِدٍ، عَنْ عَامِرٍ، عَنْ جَابِرِ بْنِ عَبْدِ اللهِ، قَالَ: سَمِعْتُ عُمَرَ بْنَ الْخَطَّابِ يَقُولُ لِطَلْحَةَ بْنِ عُبَيْدِ اللهِ: مَا لِي أَرَاكَ قَدْ شَعِثْتَ وَاغْبَرَرْتَ مُنْذُ تُوُفِّيَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ؟ لَعَلَّكَ سَاءَكَ يَا طَلْحَةُ إِمَارَةُ ابْنِ عَمِّكَ؟ قَالَ: مَعَاذَ اللهِ، إِنِّي لَأَجْدَرُكُمْ أَنْ لَا أَفْعَلَ ذَاِكَ، إِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: إِنِّي لَأَعْلَمُ كَلِمَةً لَا يَقُولُهَا رجلٌ عِنْدَ حَضْرَةِ الْمَوْتِ إِلَّا وَجَدَ رُوحَهُ لَهَا رَوْحًا حِينَ تَخْرُجُ مِنْ جَسَدِهِ، وَكَانَتْ لَهُ نُورًا يَوْمَ الْقِيَامَةِ " فَلَمْ أَسْأَلْ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَنْهَا، وَلَمْ يُخْبِرْنِي بِهَا، فَذَلِكَ الَّذِي دَخَلَنِي، قَالَ عُمَرُ: فَأَنَا أَعْلَمُهَا، قَالَ: فَلِلَّهِ الْحَمْدُ، قَالَ: فَمَا هِيَ؟ قَالَ: هِيَ الْكَلِمَةُ الَّتِي قَالَهَا لِعَمِّهِ: لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ، قَالَ طَلْحَةُ: صَدَقْتَ

حديث صحيح بطرقه، مجالد - وهو ابن سعيد - ضعيف، وباقي رجال السند ثقات من رجال الشيخين. عامر: هو ابن شَراحيل الشعبي
وأخرجه البزار (930) ، والنسائي في " عمل اليوم والليلة " (1098) ، أبو يعلى (640) من طريق عبد الله بن نمير، بهذا الإسناد
وسيأتي من غير هذا الطريق برقم (252) و (1384) و (1386)
وأخرجه بنحوه ابن ماجه (3796) ، والنسائي في " اليوم والليلة " (1101) ، وابن حبان (205) من طريق يحيى بن طلحة، عن أمه سُعدى المُرِّية، قالت: مرَّ عمر بن الخطاب بطلحة ... فذكرته. وهذا إسناد صحيح
وقوله: " لها رَوْحاً "، قال السندي: أي: رحمة ورضواناً

حدثنا عبد الله بن نمير، عن مجالد، عن عامر، عن جابر بن عبد الله، قال: سمعت عمر بن الخطاب يقول لطلحة بن عبيد الله: ما لي اراك قد شعثت واغبررت منذ توفي رسول الله صلى الله عليه وسلم؟ لعلك ساءك يا طلحة امارة ابن عمك؟ قال: معاذ الله، اني لاجدركم ان لا افعل ذاك، اني سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: اني لاعلم كلمة لا يقولها رجل عند حضرة الموت الا وجد روحه لها روحا حين تخرج من جسده، وكانت له نورا يوم القيامة " فلم اسال رسول الله صلى الله عليه وسلم عنها، ولم يخبرني بها، فذلك الذي دخلني، قال عمر: فانا اعلمها، قال: فلله الحمد، قال: فما هي؟ قال: هي الكلمة التي قالها لعمه: لا اله الا الله، قال طلحة: صدقت حديث صحيح بطرقه، مجالد - وهو ابن سعيد - ضعيف، وباقي رجال السند ثقات من رجال الشيخين. عامر: هو ابن شراحيل الشعبي واخرجه البزار (930) ، والنساىي في " عمل اليوم والليلة " (1098) ، ابو يعلى (640) من طريق عبد الله بن نمير، بهذا الاسناد وسياتي من غير هذا الطريق برقم (252) و (1384) و (1386) واخرجه بنحوه ابن ماجه (3796) ، والنساىي في " اليوم والليلة " (1101) ، وابن حبان (205) من طريق يحيى بن طلحة، عن امه سعدى المرية، قالت: مر عمر بن الخطاب بطلحة ... فذكرته. وهذا اسناد صحيح وقوله: " لها روحا "، قال السندي: اي: رحمة ورضوانا
হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
মুসনাদে আহমাদ
মুসনাদে উমার ইবনুল খাত্তাব (রাঃ) [উমারের বর্ণিত হাদীস] (مسند عمر بن الخطاب)