৫৫

পরিচ্ছেদঃ

৫৫। একবার ফাতিমা (রাঃ) আবু বাকর আস সিদ্দিক (রাঃ) এর নিকট দূত পাঠিয়ে তাঁর কাছে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়া সাল্লামের সেই সম্পত্তির উত্তরাধিকার চাইলেন, যা তাঁকে আল্লাহ মদীনায় ও ফাদাকে দিয়েছিলেন এবং খায়বারের এক পঞ্চমাংশের অবশিষ্টাংশ। আবু বাকর (রাঃ) জবাব দিলেনঃ রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম বলেছেন, আমরা (নবীরা) উত্তরাধিকার সূত্রে কোন সম্পত্তি হস্তান্তর করিনা। আমরা যে সম্পত্তি রেখে যাই তা সাদাকা। এই সম্পত্তি মুহাম্মাদ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের জীবদ্দশায় যে অবস্থায় ছিল, আমি তাকে কখনো সেই অবস্থা থেকে অন্য অবস্থায় পরিবর্তিত করবো না এবং সাদাকার ব্যাপারে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম যা করেছেন, আমি অবশ্যই ঠিক তাই করবো।

এভাবে আবু বাকর উক্ত সম্পত্তি থেকে ফাতিমাকে কিছুই দিলেন না। এ জন্য ফাতিমা আবু বকরের (রাঃ) ওপর রাগান্বিত হলেন। আবু বাকর (রাঃ) বললেনঃ সেই আল্লাহর কসম যার হাতে আমার জীবন, আমার নিকট রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামের আপন জনের সাথে সম্পর্ক বহাল রাখা আমার নিজের আপনজন অপেক্ষা অধিক প্রিয়। তবে এই সম্পত্তির ব্যাপারে তোমাদের ও আমাদের মধ্যে যে বিরোধ সৃষ্টি হয়েছে, সে ক্ষেত্রে আমি ন্যায়নীতি থেকে বিচ্যুত হইনি এবং এই সম্পত্তির ব্যাপারে রাসূলুল্লাহ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লামকে যা করতে দেখেছি, আমি তা করা থেকে বিরত হইনি।[১]

حَدَّثَنَا حَجَّاجُ بْنُ مُحَمَّدٍ، حَدَّثَنَا لَيْثٌ، حَدَّثَنِي عُقَيْلٌ، عَنِ ابْنِ شِهَابٍ، عَنْ عُرْوَةَ بْنِ الزُّبَيْرِ، عَنْ عَائِشَةَ زَوْجِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، أَنَّهَا أَخْبَرَتْهُ: أَنَّ فَاطِمَةَ بِنْتَ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَرْسَلَتْ إِلَى أَبِي بَكْرٍ الصِّدِّيقِ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ، تَسْأَلُهُ مِيرَاثَهَا مِنْ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مِمَّا أَفَاءَ اللهُ عَلَيْهِ بِالْمَدِينَةِ وَفَدَكَ، وَمَا بَقِيَ مِنْ خُمُسِ خَيْبَرَ، فَقَالَ أَبُو بَكْرٍ: إِنَّ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: " لَا نُورَثُ، مَا تَرَكْنَا صَدَقَةٌ، إِنَّمَا يَأْكُلُ آلُ مُحَمَّدٍ فِي هَذَا الْمَالِ " وَإِنِّي وَاللهِ لَا أُغَيِّرُ شَيْئًا مِنْ صَدَقَةِ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ عَنْ حَالِهَا الَّتِي كَانَتْ عَلَيْهَا فِي عَهْدِ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، وَلَأَعْمَلَنَّ فِيهَا بِمَا عَمِلَ بِهِ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَأَبَى أَبُو بَكْرٍ أَنْ يَدْفَعَ إِلَى فَاطِمَةَ مِنْهَا شَيْئًا، فَوَجَدَتْ فَاطِمَةُ عَلَى أَبِي بَكْرٍ فِي ذَلِكَ، وقَالَ أَبُو بَكْرٍ: وَالَّذِي نَفْسِي بِيَدِهِ لَقَرَابَةُ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَحَبُّ إِلَيَّ أَنْ أَصِلَ مِنْ قَرَابَتِي، وَأَمَّا الَّذِي شَجَرَ بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ مِنْ هَذِهِ الْأَمْوَالِ فَإِنِّي لَمْ آلُ فِيهَا عَنِ الْحَقِّ، وَلَمْ أَتْرُكْ أَمْرًا رَأَيْتُ رَسُولَ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَصْنَعُهُ فِيهَا إِلَّا صَنَعْتُهُ

إسناده صحيح على شرط الشيخين. ليث: هو ابن سعد، وعُقيل: هو ابن خالد بن عَقيل الأيلي
وأخرجه البخاري (4240) و (4241) ، ومسلم (1759) ، وأبو داود (2968) ، والبيهقي 10 / 142 من طرق عن الليث، بهذا الإسناد. وقد تقدم برقم (9)

حدثنا حجاج بن محمد حدثنا ليث حدثني عقيل عن ابن شهاب عن عروة بن الزبير عن عاىشة زوج النبي صلى الله عليه وسلم انها اخبرته ان فاطمة بنت رسول الله صلى الله عليه وسلم ارسلت الى ابي بكر الصديق رضي الله عنه تساله ميراثها من رسول الله صلى الله عليه وسلم مما افاء الله عليه بالمدينة وفدك وما بقي من خمس خيبر فقال ابو بكر ان رسول الله صلى الله عليه وسلم قال لا نورث ما تركنا صدقة انما ياكل ال محمد في هذا المال واني والله لا اغير شيىا من صدقة رسول الله صلى الله عليه وسلم عن حالها التي كانت عليها في عهد رسول الله صلى الله عليه وسلم ولاعملن فيها بما عمل به رسول الله صلى الله عليه وسلم فابى ابو بكر ان يدفع الى فاطمة منها شيىا فوجدت فاطمة على ابي بكر في ذلك وقال ابو بكر والذي نفسي بيده لقرابة رسول الله صلى الله عليه وسلم احب الي ان اصل من قرابتي واما الذي شجر بيني وبينكم من هذه الاموال فاني لم ال فيها عن الحق ولم اترك امرا رايت رسول الله صلى الله عليه وسلم يصنعه فيها الا صنعتهاسناده صحيح على شرط الشيخين ليث هو ابن سعد وعقيل هو ابن خالد بن عقيل الايليواخرجه البخاري 4240 و 4241 ومسلم 1759 وابو داود 2968 والبيهقي 10 142 من طرق عن الليث بهذا الاسناد وقد تقدم برقم 9

হাদিসের মানঃ সহিহ (Sahih)
পুনঃনিরীক্ষণঃ
মুসনাদে আহমাদ
মুসনাদে আবু বকর সিদ্দিক (রাঃ) [আবু বকরের বর্ণিত হাদীস] (مسند أبي بكر)